श्याम स्मृति – एकै साधे सब सधै ...
उद्धरणों सूक्तियों, लोकोक्तियों को पूर्णतया सम्पूर्ण रूप में तथा पूर्ण अर्थ-निष्पत्ति में लेना चाहिए | होता यह है कि प्रायः हम अपने मतलब के अर्थ वाले शब्द समूहों को प्रयोग में लाते रहते हैं जो आधा-अधूरा फल देते हैं| आजकल ‘एकै साधे सब सधै...’ के अर्थ-भाव को लेकर सभी चल रहे हैं अतः सेवा –साहित्य के क्षेत्र में भी तमाम नयी नयी संस्थाएं, संस्थान, वर्ग, गुट आदि खड़े होते जा रहे हैं| कोई एक लाख बृक्ष लगाने का संकल्प लिए बैठा , कोई धरती को हरित बनाने का, जल बचाने का ....कोई पर्यावरण सुधार का तो कोई नारी उद्धार का झंडा उठाये हुए है | कोई वृद्धों की सेवा का तो कोई फुटपाथ के गरीब बच्चों के खाने पीने के प्रवंधन का | तमाम साहित्यिक बंधु, राजनैतिक व्यक्ति, पत्र-पत्रिकाएं विविधि विषयों पर चिंता व चिंतन कर रहे हैं |
इससे उन सभी व्यक्ति, वर्ग, ग्रुप, संस्था व पत्र-पत्रिका आदि को नाम व प्रसिद्धि मिलती है, बड़े पुरस्कार भी प्राप्त हो जाते हैं, होते रहे हैं | वे समाज के सेलीब्रिटी बन जाते हैं, अर्थात उनका प्रायः सब कुछ सध जाता है | परन्तु क्या वे उद्देश्य व साध्य पूरे हो पाते हैं ? वर्षों वर्षों से ये पेड़ लगाए जा रहे हैं परन्तु क्या भारत हरित होपाया है, क्या गरीबी कम हुई है, फुटपाथें खाली हुई हैं, स्त्री पर हिंसा व अत्याचार कम हुए हैं?
वास्तव में हम उस दोहे कीप्रथम पंक्ति में मस्त, आगे के कथन का अर्थभाव भूल जाते हैं ..’ जो तू सेवै मूल को ..” | ये सारे कृतित्व व कार्य बृक्ष की शाखाएं ही हैं ..| शाखाओं को पनपने से रोकना, पनपने हेतु जल धार से सींचना भी एक उद्देश्य हो सकता है, परन्तु जब तक मूल के उच्छेद, सेवा या सिंचन का ‘ एक साध्य’ नहीं अपनाया जाएगा समस्याओं का उच्छेद कैसे होगा?
मानव की समस्याओं का मूल क्या है ?निश्चय ही मानव-आचरण | खांचों में प्रयत्न की अपेक्षा यदि चिंता, चिंतन व कृतित्व इसी मूल ..मानव के आचरण सुधार के प्रति हों तो सभी समस्याएं स्वयमेव ही समाप्ति की ओर प्रयाण करने लगेंगी |कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रत्येक विज्ञजन मानव आचरण के बारे में जानता है ...पर उस पर चिंतन नहीं करता ...उसपर चलता नहीं है...उन्हें दैनिक जीवन के अभ्यास व कर्तव्य-पालन का अंग नहीं बनाता |
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