ब्रज
बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
मेरे शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा
काव्य संग्रह ..."
ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ
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प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का
संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है .....भाव अरपन ..ग्यारह--घनाक्षरी छंद.....
शरद ऋतु
भूरे भूरे मतवारे गरजि गरजि घन,
जियरा डरावें पर तन सरसावें ना |
गरजि तरजि डोलें इत उत सारे नभ ,
आस तौ बंधावें पर जल बरसावें ना |
शरद में तेज घाम तन झुलासावे सखि,
बरखा बुढानी अब मन हरासावे ना |
कहुं कहुं कबहुँ जल्द बरसावें नीर,
हरी की भगति हर कोऊ नर पावै ना ||
कांस के धवल पुष्प फूले चहुँ ओर जैसे,
धवल जलद आय महि पै बिखरि गए |
निरमल नीर भये नदिया नार पोखर ,
पाय संत वानी मन सबके विमल भये |
गूंजि रहे मधुकर खग करें कलरव ,
फूले हैं कमल सर निर्गुन सगुन भये |
जानिकें शरद ऋतु खंजन प्रकट हुये,
पाय सुसुयोग जिमि सुकृत उदय भये ||
शरद की आतप निशि सोषे गगन ससि,
बिखरावे महि शीतल चांदनी सुहानी |
चकित चकोर ससि आनन् निहारि हरखे,
निरखि निरखि प्रिय कौं अन्खिंयाँ जुड़ानी|
सखि बोलो प्यारे सुर मन उमंगाय उठे,
काहे चुप चुप हो खोई सोई अलसानी |
आई ये शरद ऋतु नेह रीति-नीति,
उठे तन -पीर मन में प्रीति वो अजानी ||
---- क्रमश ....