शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

यत्पिंडे तद्ब्रह्मांडे --पत्थर पर अंकित--शारीरिक संरचना ---डा श्याम गुप्त...




                              यत्पिंडे तद्ब्रह्मांडे


                          यत्पिंडे तद्ब्रह्मांडे—यह वैदिक साहित्य के मूल वाक्यों में से एक है | वैदिक स्थापना है कि जो हमारे शरीर में है वही इस ब्रह्माण्ड में है अथवा कहा जा सकता है कि हमारा शरीर ब्रह्माण्ड का ही प्रतिरूप है | इसका कुछ प्रमाण निम्न चित्रों में स्पष्ट देखा जा सकता है | निम्न चित्र संगमरमर के कुछ पत्थरों के छैतिज़ काट (स्लाइस-कट) हैं जिनकी रचना प्राणी शरीर के अवयवों की आतंरिक- दूरबीन से देखने पर- संरचना से कितना मेल खाती है |
चित्र १. –त्वचा की संरचना ---से हूबहू मेल खाती है | जिसमें त्वचा के रोमकूप, रोम स्पष्ट नज़र आते हैं | बाएं तरफ त्वचा का थोड़ा सा भाग गायब है जो  किसी रोग अथवा कट का प्रतीक है |


 चित्र-2 . शरीर के फेटी टिश्यू या चर्बी की संरचना से मेल रखता है | 


चित्र-3..फेटी टिश्यू के साथ कोलेजन फाइबर-------

चित्र-४. पट्टीदार मांस पेशी ( स्ट्रिप्ड मसल )की संरचना ----



चित्र-५. स्नायु ऊतक ( नर्व टिश्यू ) की संरचना के समान रचना  -----
चित्र -१
चित्र-2.



चित्र-3.


चित्र-४.
चित्र-५.

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

ब्रजबांसुरी की रचनाएँ ...डा श्याम गुप्त का ब्रजभाषा काव्य संग्रह ...डा श्याम गुप्त

 

  ब्रजबांसुरी की रचनाएँ ... 
 




                        मेरे  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....

        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
        
रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
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श्रीमती सुषमा गुप्ता