गुरुवार, 30 मई 2013

श्याम स्मृति से – एकै साधे सब सधै ...डा श्याम गुप्त ....


                                         श्याम स्मृति – एकै साधे सब सधै ...
           उद्धरणों सूक्तियों, लोकोक्तियों को पूर्णतया सम्पूर्ण रूप में तथा पूर्ण अर्थ-निष्पत्ति में लेना चाहिए | होता यह है कि प्रायः  हम अपने मतलब के अर्थ वाले शब्द समूहों को प्रयोग में लाते रहते हैं जो आधा-अधूरा फल देते हैं| आजकल ‘एकै साधे सब सधै...’ के  अर्थ-भाव को लेकर सभी चल रहे हैं अतः सेवा –साहित्य के क्षेत्र में भी तमाम नयी नयी संस्थाएं, संस्थान, वर्ग, गुट आदि खड़े होते जा रहे हैं|  कोई एक लाख बृक्ष लगाने का संकल्प लिए बैठा , कोई धरती को हरित बनाने का, जल बचाने का ....कोई पर्यावरण सुधार का तो कोई नारी उद्धार का झंडा उठाये हुए है | कोई वृद्धों की सेवा का तो कोई फुटपाथ के गरीब बच्चों के खाने पीने के प्रवंधन का | तमाम साहित्यिक बंधु, राजनैतिक व्यक्ति, पत्र-पत्रिकाएं विविधि विषयों पर चिंता व चिंतन कर रहे हैं |
           इससे उन सभी व्यक्ति, वर्ग, ग्रुप, संस्था व पत्र-पत्रिका आदि को नाम व प्रसिद्धि मिलती है, बड़े पुरस्कार भी प्राप्त हो जाते हैं, होते रहे हैं  |  वे समाज के सेलीब्रिटी बन जाते हैं, अर्थात उनका प्रायः सब कुछ सध जाता है | परन्तु क्या वे उद्देश्य व साध्य पूरे हो पाते हैं ? वर्षों वर्षों से ये पेड़ लगाए जा रहे हैं परन्तु क्या भारत हरित होपाया है, क्या गरीबी कम हुई है, फुटपाथें खाली हुई हैं, स्त्री पर हिंसा व अत्याचार कम हुए हैं?
          वास्तव में हम उस दोहे कीप्रथम पंक्ति में मस्त,  आगे के कथन का अर्थभाव भूल जाते हैं .. जो तू सेवै मूल को ..| ये सारे कृतित्व व कार्य बृक्ष की शाखाएं ही हैं ..| शाखाओं को पनपने से रोकना, पनपने हेतु जल धार से सींचना भी एक  उद्देश्य हो सकता है, परन्तु जब तक मूल के उच्छेद, सेवा या सिंचन का ‘ एक साध्य’ नहीं अपनाया जाएगा समस्याओं का उच्छेद कैसे होगा?
          मानव की समस्याओं का मूल क्या है ?निश्चय ही मानव-आचरण | खांचों में प्रयत्न की अपेक्षा यदि चिंता, चिंतन व कृतित्व इसी मूल ..मानव के आचरण सुधार के प्रति हों तो सभी समस्याएं स्वयमेव ही समाप्ति की ओर प्रयाण करने लगेंगी |कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रत्येक विज्ञजन मानव आचरण के बारे में जानता है ...पर उस पर चिंतन नहीं करता ...उसपर चलता नहीं है...उन्हें दैनिक जीवन के अभ्यास व कर्तव्य-पालन का अंग नहीं बनाता |   

बृज भाषा काव्य संग्रह......ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ..भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१४ ..कैसो लोकतंत्र .....डा श्याम गुप्त ...

बृज भाषा काव्य संग्रह......ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१४..

    कैसो लोकतंत्र....


लोक वही तौ होवै है जो,
वासी, सूधौ-सुघर, देश कौ |
और तंत्र,  जो बने सहायक,
ताके सुख-दुःख द्वंद्व रेख कौ |

आजु  लोक तौ बहुरि यंत्रणा ,
के झूला में झूलि रहौ है |
और तंत्र अपुनी सत्ता के,
मद में अकड़ो फूलि रहौ है |

ताही कारन लोक भयौ है,
बहुरि दूरि निज कर्तव्यन ते|
तंत्र हू भयौ दूरि लोक के-
प्रति आपुनि करमन-धरमन ते |

लोक निजी स्वारथ रत है कें,
बिसरौ आपुन अधिकारन ते |
तंत्र भयौ स्वच्छंद रौंदिहै ,
जन कौं निज अत्याचारन ते |

सौ में अस्सी जनता नाहीं ,
जाकूं नेता चुनिवौ चाहै  |
पर कैसो ये तंत्र तौऊ वो,
जनता कौ शासक बनि जावै |

सोचि  समझि कै वोट देयं तौ ,
हम सब तंत्र ही बदल डारें |
शासन तंत्र करै कछु ऐसो,
बिना डरें सबही मत डारें |

अपने अपने क्षेत्रन के जो,
सूधे सुघर औ होयं उदार  |
वोही होयं चुनाव में खड़े,
सांचे सरल रहें संस्कार |

नेहरू पन्त पटेल अटल से,
नेता जब चुनिकें आवें |
सभ्य देश वासी आपुनि ही,
अपने मत सब दैवे जावें |

सबते ज्यादा वोट पाय जो,
ताही अनुरूप सजै ये तंत्र |
लोकतंत्र तब बनि पावैगौ,
सांचुहि सुखद लोक कौ तंत्र ||



            -------------क्रमश...भाव अरपन छह ...अतुकांत गीत ..अगली पोस्ट में ..













सोमवार, 27 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ...भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-६..प्यादे ...

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-६..प्यादे ...

हम तौ हैं प्यादे ज़नाब ,
चलत रहें सूधे ही सूधे |
 

होय जायं  टेड़े जो जनाब ,
बनि जाएँ राजा-वजीर |
बदल जाय हाथन की तकदीर,
होय जाय राजा की मात |
हम तौ हैं प्यादे जनाब,
चलत रहें पीछे ही पीछे ||

हम राजा के आगें चलिहें ,
हम राजा के पीछे चलिहें |
दायें चलिहें, बाएं चलिहें ,
हम ही तौ रक्षक जनाब |
हम तौ हैं प्यादे जनाब, 
चलत रहें पीछे ही पीछे ||

सब ते आगें हम ही जावें ,
रन भेरी हू हमहि बजावैं |
पतिया पहुंचावें औ लावें ,
हम ही सब संदेस सुनावें |
गुप्तचर हू हमहिं जनाब,
चलत रहें पीछे ही पीछे ||

महल, किलौ, दफ्तर मग अंगना ,
सबहि ठाम है  काज हमारो|
हम सूधे साधे गण के जन ,
धुनि  के  पक्के  जनाब |
हम तौ हैं प्यादे जनाब,
चलत रहें पीछे ही पीछे ||










 

शनिवार, 25 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन १...जग कौ श्रेष्ठ तत्व ..मानुष ..

पसु-पच्छी आपुनि  बच्चनि  कौं,
दानौ   लाय   चुगावत    हैं |
पर बूढ़ेन की पालन रक्षा-
भाव  कहाँ  दिखलावत  हैं |

कीट-पतंगा तौ अपने ही ,
बच्चनि कौं खाजावैं हैं |
पालन पोसन जैसो हू तौ ,
भाव कितै दिखलावैं हैं|

देखौ है का कबहुं आपनै,
काऊ एक जुवा तोता कूँ |
निर्वल औ बूढ़े तोता की ,
देतौ  भयो चौंच में दानौ |

बूढ़े शेर और पसु-पंछी ,
सदा भूख ते ही मरिबैं |
आपुनि बूढ़े लोगनि की वे ,
सेवा नाहिं कतहु करिबैं |

पर ब्रह्मा के जाही जग में,
मानुष हू तौ रहिबे है |
जो आपुनि निरवल बूढेनि कों ,
पोषण  रक्षा   देबै   है |

भाई बांधव मीत औ नाते ,
मानुष ही अपनावे है |
जीव मिलै असहाय , सहारौ -
बने और सुखु पावै है |

याही कारन  मानुषता ये ,
मानुषता कहिलावै है |
सबते सुन्दर जीव जगत में,
मानुष  कौ बतलावें हैं  |

अति समरथि, अति सुख की-
इच्छा मैं नर, नर कौं ही भूलै |
आपुनि  स्वारथ दंभ कारने,
मोह, छंद-छल में फूलै  |

पर उपकार व  त्याग भाव ,
औ सम्मान ही जो न रहै |
बने व्यस्तता एक बहानौ,
चिंता अपनेंन की न रहै |

बिरथा ही सो मानुष जीवन,
बिरथा सुख साधन सारे |
बिरथा सब सामर्थ-सिद्धि औ,
बिरथा ही जीवन धारे |

बूढ़े निर्बल और पद दलित ,
परिजन कौं नर अभिमानी |
नांहि सहारौ देवें , वे हैं-
पसु पच्छी सम अज्ञानी ||








शुक्रवार, 10 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन-- तीन---गीत ....सुमन-८..चलौ न टेड़ी चाल... ....डा श्याम गुप्त ...

  ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
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         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 

प्रस्तुत है ---भाव अरपन तीन --गीत ...सुमन -८.. चलौ न टेड़ी  चाल ....

सूधी चलतौ चाल रहे वो ,
चलै न टेड़ी चाल |
प्यादौ बनौ रहे जीवन भरि  ,
चेहरा पै न मलाल |

टेड़ी चाल सीखि बनि जावै,
प्यादौ कबहूँ  वजीर |
बड़े -बड़ेंन कौ दिल दहलाबै, 
काँपैं साह-बजीर |

सत्ता वारे सूधी-साधी ,
जनता कौं न सताऔ |
सूधे मोहरा बनें न टेड़े ,
करिकें काम दिखाऔ |

नांहि तौ प्यादौ नाखुस है कें,
चलही जु टेड़ी चालि |
सब टेड़ेनि कों सूधौ करिदे,
सीखहु सूधी चालि |

ये जनता है सबही जानै,
को सूधौ को टेडौ |
बस गुपचुप देखिबै ही करै,
कब होजाय  सवैरो |

पै यामिनि गहराबै गहरी ,
तौ ये होस संभारै |
बड़े बड़े दिग्गज-दिक्पालन ,
कों उलटौ करि  डारै |

हर प्यादे कौं खुस रखिबौ ,
तौ , सबहि  होंय खुसहाल |
प्यादौ सूधौ बनौ रहै, बस -
चलौ न टेड़ी चाल ||






 

मंगलवार, 7 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन-- तीन---गीत ....सुमन ४....डा श्याम गुप्त ...

  ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...


                         

                     मेरे ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 

प्रस्तुत है भाव अरपन तीन--गीत ...सुमन -४...आई रे बरखा बहार .... 


रर झरर झर,
जल बरसावे मेघ |
टप टप बूँद गिरें ,
भीजै रे अंगनवा ; हो ....
आई रे बरखा बहार ... हो ...||

धड़क धड़क धड ,
धड़के जियरवा ..हो
आये न सजना हमार ....हो
आई रे बरखा बहार ||

कैसे सखि ! झूला सोहै,
कजरी के बोल भावें |
अंखियन नींद नहिं,
जियरा न चैन आवै |
कैसे सोहें सोलह श्रृंगार ..हो
आये न सजना हमार ||...आई रे बरखा ...

आये परदेशी घन,
धरती मगन मन |
हरियावै तन पाय-
पिय का संदेसवा |
गूंजै नभ मेघ मल्हार ..हो
आये न सजना हमार |...आई रे बरखा ...

घन जब जाओ तुम,
जल भरने को पुन: |
गरजि गरजि दीजो ,
पिय को संदेसवा |
कैसे जिए धनि ये तोहार ...हो
आये न सजना हमार...हो |.....आई रे बरखा ...||



रविवार, 5 मई 2013

..." ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन-दो ..सरस्वती वन्दना ....डा श्याम गुप्त ...


                         

                     मेरे   ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
   २.भाव अरपन -दो..... 
         
      सरस्वती वन्दना ... ...

धवल मराल पै विराजति मातु शारदे !
धवल मराल सौ पुनीतु मन करि  देउ  |
चित कौ मयूरा नचि नचि, प्रीति सुर गावै ,
उर भरें  नए भाव , मातु  एसौ  वर  देउ |
सुमति सुधा के सम, सुन्दर सरस सब्द ,
सुरुचि सुधीर सुभ भाव, जग भरि  देउ |
कुमति विमति मति , विमल सुमति बनें,
वीनापानि श्याम 'सीस कृपा हस्त धरि  देउ ||

हेम तनु स्वेत बसन, अम्बुज सुआसनी माँ ,
जलज की भांति सुभ्र, निरमल मन होय |
मोतिन की माल कर गहे मातु बीनापानि,
माला जैसो एका भाव, जग में सघन होय |
चारि वेद कर गहे, ज्ञान-धन दायिनी माँ ,
बुद्धिबल, ज्ञान-सुविज्ञान मेरौ धन होय |
कुंद  इंदु  धवल  तुषार हार,  गल  सोहे,
बानी-सुरदायिनी माँ, श्याम कौ नमन होय ||

राग  द्वेषु  कलमसु औ, कलुस कौ तमसु हटै,
संजम, सद-आचरन, रहें मन बसि  कर |
स्वारथ अज्ञान ते न, लेखनी भरम परै,
रहें भाव अरथ सब्द छंद, रस बनि झर |
जगत की करुना के, सुर बसें लेखनी में ,
जगहित मातु नए भाव, कवि मन भर |
सुजन सुभाव सुधी, पाठक बाढ़ें देस में ,
भाव श्याम ' सत्य शिवम् सुन्दरं मन धर ||


                                   क्रमः श ---भाव अरपन ३.....




 

शुक्रवार, 3 मई 2013

" ब्रज बांसुरी " की रचनाएँ...डा श्याम गुप्त....

                                 मेरे  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे ब्लॉग हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी |
  कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त        
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता   
                                     
                                          

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                            क्रमश -----भाव अरपन-एक --अगली पोस्ट में .....