रविवार, 5 मई 2013

..." ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन-दो ..सरस्वती वन्दना ....डा श्याम गुप्त ...


                         

                     मेरे   ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
   २.भाव अरपन -दो..... 
         
      सरस्वती वन्दना ... ...

धवल मराल पै विराजति मातु शारदे !
धवल मराल सौ पुनीतु मन करि  देउ  |
चित कौ मयूरा नचि नचि, प्रीति सुर गावै ,
उर भरें  नए भाव , मातु  एसौ  वर  देउ |
सुमति सुधा के सम, सुन्दर सरस सब्द ,
सुरुचि सुधीर सुभ भाव, जग भरि  देउ |
कुमति विमति मति , विमल सुमति बनें,
वीनापानि श्याम 'सीस कृपा हस्त धरि  देउ ||

हेम तनु स्वेत बसन, अम्बुज सुआसनी माँ ,
जलज की भांति सुभ्र, निरमल मन होय |
मोतिन की माल कर गहे मातु बीनापानि,
माला जैसो एका भाव, जग में सघन होय |
चारि वेद कर गहे, ज्ञान-धन दायिनी माँ ,
बुद्धिबल, ज्ञान-सुविज्ञान मेरौ धन होय |
कुंद  इंदु  धवल  तुषार हार,  गल  सोहे,
बानी-सुरदायिनी माँ, श्याम कौ नमन होय ||

राग  द्वेषु  कलमसु औ, कलुस कौ तमसु हटै,
संजम, सद-आचरन, रहें मन बसि  कर |
स्वारथ अज्ञान ते न, लेखनी भरम परै,
रहें भाव अरथ सब्द छंद, रस बनि झर |
जगत की करुना के, सुर बसें लेखनी में ,
जगहित मातु नए भाव, कवि मन भर |
सुजन सुभाव सुधी, पाठक बाढ़ें देस में ,
भाव श्याम ' सत्य शिवम् सुन्दरं मन धर ||


                                   क्रमः श ---भाव अरपन ३.....




 

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