शनिवार, 25 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन १...जग कौ श्रेष्ठ तत्व ..मानुष ..

पसु-पच्छी आपुनि  बच्चनि  कौं,
दानौ   लाय   चुगावत    हैं |
पर बूढ़ेन की पालन रक्षा-
भाव  कहाँ  दिखलावत  हैं |

कीट-पतंगा तौ अपने ही ,
बच्चनि कौं खाजावैं हैं |
पालन पोसन जैसो हू तौ ,
भाव कितै दिखलावैं हैं|

देखौ है का कबहुं आपनै,
काऊ एक जुवा तोता कूँ |
निर्वल औ बूढ़े तोता की ,
देतौ  भयो चौंच में दानौ |

बूढ़े शेर और पसु-पंछी ,
सदा भूख ते ही मरिबैं |
आपुनि बूढ़े लोगनि की वे ,
सेवा नाहिं कतहु करिबैं |

पर ब्रह्मा के जाही जग में,
मानुष हू तौ रहिबे है |
जो आपुनि निरवल बूढेनि कों ,
पोषण  रक्षा   देबै   है |

भाई बांधव मीत औ नाते ,
मानुष ही अपनावे है |
जीव मिलै असहाय , सहारौ -
बने और सुखु पावै है |

याही कारन  मानुषता ये ,
मानुषता कहिलावै है |
सबते सुन्दर जीव जगत में,
मानुष  कौ बतलावें हैं  |

अति समरथि, अति सुख की-
इच्छा मैं नर, नर कौं ही भूलै |
आपुनि  स्वारथ दंभ कारने,
मोह, छंद-छल में फूलै  |

पर उपकार व  त्याग भाव ,
औ सम्मान ही जो न रहै |
बने व्यस्तता एक बहानौ,
चिंता अपनेंन की न रहै |

बिरथा ही सो मानुष जीवन,
बिरथा सुख साधन सारे |
बिरथा सब सामर्थ-सिद्धि औ,
बिरथा ही जीवन धारे |

बूढ़े निर्बल और पद दलित ,
परिजन कौं नर अभिमानी |
नांहि सहारौ देवें , वे हैं-
पसु पच्छी सम अज्ञानी ||








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