शुक्रवार, 10 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन-- तीन---गीत ....सुमन-८..चलौ न टेड़ी चाल... ....डा श्याम गुप्त ...

  ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 

प्रस्तुत है ---भाव अरपन तीन --गीत ...सुमन -८.. चलौ न टेड़ी  चाल ....

सूधी चलतौ चाल रहे वो ,
चलै न टेड़ी चाल |
प्यादौ बनौ रहे जीवन भरि  ,
चेहरा पै न मलाल |

टेड़ी चाल सीखि बनि जावै,
प्यादौ कबहूँ  वजीर |
बड़े -बड़ेंन कौ दिल दहलाबै, 
काँपैं साह-बजीर |

सत्ता वारे सूधी-साधी ,
जनता कौं न सताऔ |
सूधे मोहरा बनें न टेड़े ,
करिकें काम दिखाऔ |

नांहि तौ प्यादौ नाखुस है कें,
चलही जु टेड़ी चालि |
सब टेड़ेनि कों सूधौ करिदे,
सीखहु सूधी चालि |

ये जनता है सबही जानै,
को सूधौ को टेडौ |
बस गुपचुप देखिबै ही करै,
कब होजाय  सवैरो |

पै यामिनि गहराबै गहरी ,
तौ ये होस संभारै |
बड़े बड़े दिग्गज-दिक्पालन ,
कों उलटौ करि  डारै |

हर प्यादे कौं खुस रखिबौ ,
तौ , सबहि  होंय खुसहाल |
प्यादौ सूधौ बनौ रहै, बस -
चलौ न टेड़ी चाल ||






 

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