गुरुवार, 30 मई 2013

बृज भाषा काव्य संग्रह......ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ..भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१४ ..कैसो लोकतंत्र .....डा श्याम गुप्त ...

बृज भाषा काव्य संग्रह......ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१४..

    कैसो लोकतंत्र....


लोक वही तौ होवै है जो,
वासी, सूधौ-सुघर, देश कौ |
और तंत्र,  जो बने सहायक,
ताके सुख-दुःख द्वंद्व रेख कौ |

आजु  लोक तौ बहुरि यंत्रणा ,
के झूला में झूलि रहौ है |
और तंत्र अपुनी सत्ता के,
मद में अकड़ो फूलि रहौ है |

ताही कारन लोक भयौ है,
बहुरि दूरि निज कर्तव्यन ते|
तंत्र हू भयौ दूरि लोक के-
प्रति आपुनि करमन-धरमन ते |

लोक निजी स्वारथ रत है कें,
बिसरौ आपुन अधिकारन ते |
तंत्र भयौ स्वच्छंद रौंदिहै ,
जन कौं निज अत्याचारन ते |

सौ में अस्सी जनता नाहीं ,
जाकूं नेता चुनिवौ चाहै  |
पर कैसो ये तंत्र तौऊ वो,
जनता कौ शासक बनि जावै |

सोचि  समझि कै वोट देयं तौ ,
हम सब तंत्र ही बदल डारें |
शासन तंत्र करै कछु ऐसो,
बिना डरें सबही मत डारें |

अपने अपने क्षेत्रन के जो,
सूधे सुघर औ होयं उदार  |
वोही होयं चुनाव में खड़े,
सांचे सरल रहें संस्कार |

नेहरू पन्त पटेल अटल से,
नेता जब चुनिकें आवें |
सभ्य देश वासी आपुनि ही,
अपने मत सब दैवे जावें |

सबते ज्यादा वोट पाय जो,
ताही अनुरूप सजै ये तंत्र |
लोकतंत्र तब बनि पावैगौ,
सांचुहि सुखद लोक कौ तंत्र ||



            -------------क्रमश...भाव अरपन छह ...अतुकांत गीत ..अगली पोस्ट में ..













1 टिप्पणी:

shyam gupta ने कहा…

dhanyvaad chaturvedi ji...