सोमवार, 23 नवंबर 2009

डा श्याम गुप्त की गज़ल---आपने क्या किया....

शम्मे  जलने लगे आप ने क्या किया |
दिल मचलने लगे आप ने क्या किया |

अपनी मासूम दुनिया में खोये थे हम,
चाह में खोगये  आपने  क्या किया  ।

अपनी राहों  में  थे हम,  चले जारहे,
आप क्यों मिल गये आपने क्या किया ।

खुद की चाहत से दिल अपना आबाद  था,
आस बन आ बसे,  आपने क्या किया  ।

जब खिलाये थे वो पुष्प चाहत के तो,
फ़ेर रुख चल दिये आपने क्या किया ।

साथ चलते हुए आप क्यों रुक गये,
क्यों कदम थक गये आप ने क्या किया ।

श्याम ,अब कौन चाहत का सिज़दा करे,
नाखुदा बन गये  आपने क्या किया  ॥

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

कतए ----

        १.

ज़िन्दगी इक दर्द का समंदर है ,
जाने क्या-क्या इसके अन्दर है ,
कभी तूफां समेटे डराती है -
कभी एक पाकीज़ा मंजर है |

         २.  
खामोश पिघलतीं हैं शम्माएं ,
किसको कहें क्या बताएं ;
ख़ाक हो चुका जब परवाना,
दर्दे-दिल किसको सुनाएँ |

       ३.  
रात और दिन के बीच उम्र खटती रही ,
उम्र बढ़ती रही याकि उम्र घटती रही ,
जिसने कभी भूलकर भी याद न किया श्याम,
उम्र भर उनकी याद में उम्र कटती रही |

      ४. 
क्या वो पुरसुकूं लम्हा कभी आयेगा,
आयेगा तो शायद तभी आयेगा;
वक्त कह चुका होगा अपनी दास्ताँ ,
श्याम वो वेवक्त , वक्त आयेगा ||