१.
ज़िन्दगी इक दर्द का समंदर है ,
जाने क्या-क्या इसके अन्दर है ,
कभी तूफां समेटे डराती है -
कभी एक पाकीज़ा मंजर है |
२.
खामोश पिघलतीं हैं शम्माएं ,
किसको कहें क्या बताएं ;
ख़ाक हो चुका जब परवाना,
दर्दे-दिल किसको सुनाएँ |
३.
रात और दिन के बीच उम्र खटती रही ,
उम्र बढ़ती रही याकि उम्र घटती रही ,
जिसने कभी भूलकर भी याद न किया श्याम,
उम्र भर उनकी याद में उम्र कटती रही |
४.
क्या वो पुरसुकूं लम्हा कभी आयेगा,
आयेगा तो शायद तभी आयेगा;
वक्त कह चुका होगा अपनी दास्ताँ ,
श्याम वो वेवक्त , वक्त आयेगा ||
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