मंगलवार, 7 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन-- तीन---गीत ....सुमन ४....डा श्याम गुप्त ...

  ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...


                         

                     मेरे ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 

प्रस्तुत है भाव अरपन तीन--गीत ...सुमन -४...आई रे बरखा बहार .... 


रर झरर झर,
जल बरसावे मेघ |
टप टप बूँद गिरें ,
भीजै रे अंगनवा ; हो ....
आई रे बरखा बहार ... हो ...||

धड़क धड़क धड ,
धड़के जियरवा ..हो
आये न सजना हमार ....हो
आई रे बरखा बहार ||

कैसे सखि ! झूला सोहै,
कजरी के बोल भावें |
अंखियन नींद नहिं,
जियरा न चैन आवै |
कैसे सोहें सोलह श्रृंगार ..हो
आये न सजना हमार ||...आई रे बरखा ...

आये परदेशी घन,
धरती मगन मन |
हरियावै तन पाय-
पिय का संदेसवा |
गूंजै नभ मेघ मल्हार ..हो
आये न सजना हमार |...आई रे बरखा ...

घन जब जाओ तुम,
जल भरने को पुन: |
गरजि गरजि दीजो ,
पिय को संदेसवा |
कैसे जिए धनि ये तोहार ...हो
आये न सजना हमार...हो |.....आई रे बरखा ...||



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