ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
मेरे शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- श्रीमती सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-६..प्यादे ...
हम तौ हैं प्यादे ज़नाब ,
चलत रहें सूधे ही सूधे |
होय जायं टेड़े जो जनाब ,
बनि जाएँ राजा-वजीर |
बदल जाय हाथन की तकदीर,
होय जाय राजा की मात |
हम तौ हैं प्यादे जनाब,
चलत रहें पीछे ही पीछे ||
हम राजा के आगें चलिहें ,
हम राजा के पीछे चलिहें |
दायें चलिहें, बाएं चलिहें ,
हम ही तौ रक्षक जनाब |
हम तौ हैं प्यादे जनाब,
चलत रहें पीछे ही पीछे ||
सब ते आगें हम ही जावें ,
रन भेरी हू हमहि बजावैं |
पतिया पहुंचावें औ लावें ,
हम ही सब संदेस सुनावें |
गुप्तचर हू हमहिं जनाब,
चलत रहें पीछे ही पीछे ||
महल, किलौ, दफ्तर मग अंगना ,
सबहि ठाम है काज हमारो|
हम सूधे साधे गण के जन ,
धुनि के पक्के जनाब |
हम तौ हैं प्यादे जनाब,
चलत रहें पीछे ही पीछे ||
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