सोमवार, 4 नवंबर 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....भाव अरपन .ग्यारह ..घनाक्षरी छंद... .. ....डा श्याम गुप्त....



            ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
              
                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नवगीत आदि  मेरे  ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव अरपन ..ग्यारह--घनाक्षरी छंद.....


 
 


         
              शरद ऋतु

भूरे  भूरे मतवारे गरजि गरजि घन,
जियरा डरावें पर तन सरसावें ना |
गरजि तरजि डोलें इत उत सारे नभ ,
आस तौ बंधावें पर जल बरसावें ना |
शरद में तेज घाम तन झुलासावे सखि,
बरखा बुढानी अब मन हरासावे ना |
कहुं कहुं कबहुँ जल्द बरसावें नीर,
हरी की भगति हर कोऊ नर पावै ना ||

कांस के धवल पुष्प  फूले चहुँ ओर जैसे,
धवल जलद आय महि पै बिखरि गए |
निरमल नीर भये नदिया नार पोखर ,
पाय संत वानी मन सबके विमल भये |
गूंजि रहे मधुकर खग करें कलरव ,
फूले हैं कमल सर निर्गुन  सगुन भये |
जानिकें शरद ऋतु खंजन प्रकट हुये,
पाय सुसुयोग जिमि सुकृत उदय भये ||

शरद की आतप निशि सोषे गगन ससि,
बिखरावे महि शीतल  चांदनी सुहानी |
चकित चकोर ससि आनन् निहारि हरखे,
निरखि निरखि प्रिय कौं अन्खिंयाँ जुड़ानी|
सखि बोलो प्यारे सुर मन उमंगाय  उठे,
काहे चुप चुप हो खोई सोई अलसानी |
आई ये शरद ऋतु नेह रीति-नीति,
उठे तन -पीर  मन में प्रीति वो अजानी ||


                                                  ---- क्रमश ....








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