ब्रज
बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
मेरे शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा
काव्य संग्रह ..."
ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ
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कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का
संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है .....भाव अरपन ..नौ....अगीत ....
सुमन १....सुख ..
इक दूजे सौं
दूरि है जावे ते
हिया की दूरी घटि जावे है |
वियोग में देर लौं
राह देखिबे के बाद
मिलन कौ सुख
और हूँ अनूठौ है जावै है |
सुमन ३-तिहारे बोल....
तिहारे बोल
बेरि बेरि काननि में आवैं हैं ;
रुबावत हैं
मनावत हैं
समुझावत हैं
अबिनासी अनहद नाद की लौं
बेरि बेरि
तिहारी सुधि दिलावें हैं |
सुमन ५ - उपलब्धि ...
मन के कोरे कागद पै
तिहारी छवि
जोत किरन लौं लहराई
एक नई कविता
खिलि आई ,
पुष्पित है आई |
सुमन ८ -अमर ....
मरिबे के बाद, जीव-
जदपि छूटि जावै है -
बंधन ते, जगत ते, पर -
कैद है जावै है,
मन में,
आत्मजननि के, अपुनि जनन के,
सुधि रूपी बंधन में, और-
है जावै है ...अमर |
7 टिप्पणियां:
वाह कितने प्यारे प्यारे गीत । अंतिम वाला तो बहुत
बहुत सुंदर और आध्यात्मिक भी ।
dhanyvad aashaj....
लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत बढिया...सुन्दर ..
धन्यवाद अशोक जी....
धन्यवाद प्रसन्न जी....
धन्यवाद चाहर जी....
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