ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन -पंद्रह --दोहे ...... ....डा श्याम गुप्त ...
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ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ
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प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का
संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है .....भाव-अरपन ....पंद्रह---दोहे....दोहे....नीति के....
जप ताप भगति न जानहूं,नहीं मैं वंदन ध्यान,
माँ तेरौ ही अनुसरन , मेरौ सकल जहान |
श्याम पूत हो एक ही,होवै साधु सुभाव ,
कुल आनंदित ह्वै रहै, चाँद चांदनी भाव |
सदाचार की थापना सास्त्र अरथ समुझाय ,
आपु करे सद आचरन , सो आचार्य कहाय |
नर नारी कौ द्वन्द तौ , है आदिम आचार ,
पर तिरिया मन टे खुले, मानुस कौ व्यौहार |
वेद सास्त्र औ धरम रत, निज की नहिं पहचान,
जैसें करछी पाक में, सकै न रस कौं जान | .........
नव नीति दोहे .....
मां तेरे ही चित्र पै, नित प्रति पुष्प चढ़ाउं,
मिसरी सी वानी मिले, मंत्री पद पाजाउं |
रोटी दो ही खाइए, सब्जी एक छिटांक,
श्याम ताहि के कारने , भटकें सुबहो सांझ |
चाहें जो कुल जनमियाँ , करनी जो हू होय ,
नेता मंत्री पद मिलौ ,मो सम भलौ न कोय |
तोकूं कछु भी नहीं मिले , सब कछु मेरौ होय,
जासं बढ़िकै जगत में, भली नीति का होय |
जन तौ तंतर में घिरौ , तंत्र भयो परतंत्र ,
चोर लुटेरे लूटिहैं ,डोलहिं भये सुतंत्र | ------
झूठ पुराण
तेल पाउडर बेचिहैं, झूठ बोलि इठलायं ,
बहुरि महानायक बने, मिलहिं लोग हरसायं|
साबुन क्रीम औ तेल कौ ,बेचीं रहीं इतराय ,
झूठे विज्ञापन करें , हीरोइन कहलायं |
झूठे वादे करि रहे, कुरसी में हथियाय ,
पांच बरस भूले रहें , सो नेता कहलायं |
झूठ बसौ संसार में, झूठे सब व्यौहार ,
या कलिजुग में झूंठ ही , सब सुक्खन कौ सार |
जो कोऊ कहि पाय जे, झूठी हमारे बात,
श्याम ताहि गुरु मानिकें ,चरन धूरि ले माथ | -----
क्रमश.....
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