शनिवार, 5 अप्रैल 2014

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन -पंद्रह --दोहे ...... ....डा श्याम गुप्त ...

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन -पंद्रह --दोहे ...... ....डा श्याम गुप्त ...

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ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
              

                     मेरे नवीनतम प्रकाशित  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नवगीत आदि  मेरे  ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव-अरपन ....पंद्रह---दोहे....
          दोहे....नीति के....

जप ताप भगति न जानहूं,नहीं मैं वंदन ध्यान,
माँ तेरौ ही अनुसरन , मेरौ सकल जहान |

श्याम पूत हो एक ही,होवै साधु सुभाव ,
कुल आनंदित ह्वै रहै, चाँद चांदनी भाव |

सदाचार की थापना सास्त्र अरथ समुझाय ,
आपु करे सद आचरन , सो आचार्य कहाय |

नर नारी कौ द्वन्द तौ , है आदिम आचार ,
पर तिरिया मन टे खुले, मानुस कौ व्यौहार |

वेद सास्त्र औ धरम रत, निज की नहिं  पहचान,
जैसें करछी  पाक में, सकै  न रस कौं जान |     .........

                 नव नीति दोहे .....

मां तेरे ही चित्र पै,  नित प्रति पुष्प चढ़ाउं,
मिसरी सी वानी मिले, मंत्री पद पाजाउं |

रोटी दो ही खाइए, सब्जी एक छिटांक,
श्याम ताहि के कारने , भटकें सुबहो सांझ |

चाहें जो कुल जनमियाँ , करनी जो हू होय ,
नेता मंत्री पद मिलौ ,मो सम भलौ न कोय |

तोकूं कछु भी नहीं मिले , सब कछु मेरौ होय,
जासं बढ़िकै जगत में, भली नीति का होय |

जन तौ तंतर में घिरौ , तंत्र भयो परतंत्र ,
चोर लुटेरे लूटिहैं ,डोलहिं भये सुतंत्र |      ------

                     झूठ पुराण

तेल पाउडर बेचिहैं, झूठ बोलि इठलायं ,
बहुरि महानायक बने, मिलहिं लोग हरसायं|

साबुन क्रीम औ तेल कौ ,बेचीं रहीं इतराय ,
झूठे विज्ञापन करें , हीरोइन कहलायं |

झूठे वादे  करि रहे, कुरसी में हथियाय ,
पांच बरस भूले रहें , सो नेता कहलायं |

झूठ बसौ संसार में,  झूठे सब व्यौहार ,
या कलिजुग में झूंठ ही , सब सुक्खन कौ सार |

जो कोऊ कहि पाय जे, झूठी हमारे बात,
श्याम ताहि गुरु मानिकें ,चरन  धूरि ले माथ | -----


                                   क्रमश.....










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