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ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ
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प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का
संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है ...अंतिम ..भाव-अरपन ..अठारह ...कृष्ण -लीला कौ तत्व ( नौ लीलाओं का तात्विक अर्थ..कुण्डली छंदों में ).... दो लीलाएं प्रस्तुत हैं....सुमन १ ..... गौधन चोरी....
माखन की चोरी करें नित प्रति नंदकिसोर ,
कछु खावें कछु फैकिहें, मटुकी दैवें फोर |
मटुकी दैवें फोर, सखनि संग घर घर जावें ,
चुपकें मटुकी फोर, सबहि गोधन फैलावें |
देहें यही संदेसु, श्याम' समुझें ब्रजबासी ,
आपु बनें बलवान, दीन हों मथुरावासी ||
गोकुल बासी का गए, अरथ कारने भूलि |
माखन दूध नगर चलौ, गांवन उडिहै धूलि |
गांवन उडिहै धूलि, गाँव सगरो है भूखौ,
नगर होयं संपन्न, खायं हम रूखौ-सूखौ |
गागर दैहैं फोरि, श्याम सुनिलें ब्रजवासी ,
जो मथुरा लेजावै, गोधन गोकुलवासी ||
सुमन -३..चीर हरण ...
चीर मांगि रहीं गोपियाँ करि करि बहु मनुहारि ,
पैठीं काहे नीर सब , सगरे बसन उतारि |
सगरे बसन उतारि , लाज कैसी अब मन में ,
सोई आत्मा मो में, तो मेंहु सकल भुवन में |
कन कन मैं ही बसौ, है मेरौ ही तनु नीर,
मोसौं कैसी लाज लें आइ किनारे चीर ||
उचित नाहिं व्यौहार ये, नाहिं सास्त्र अनुकूल,
नंगे होय जल में घुसौ, मरजादा प्रतिकूल |
मरजादा प्रतिकूल, श्याम नै दियो ज्ञान यह,
दोनों बांह उठाय, बचन सब देउ आजु यह |
करहिं समरपन पूर्ण, लगावें मोही में चित,
कबहुँ न होवै भूल, भाव यह समुझें समुचित ||
कोऊ रहौ न देख अब, सब है सूनौ सांत ,
चाहे जो मन की करौ, चहुँ दिसि है एकांत |
चहुँ दिसि है एकांत, करौ अब पाप-पुण्य सब ,
पर नर की यह भूल, देखिहै सदा प्रभू सब |
कन कन बसिया ईश, हर जगह देखे सोई,
सोच समुझ कर कर्म, न प्रभु ते छिपिहै कोई ||
-----इति---- ----- ब्रज बांसुरी ....डा श्याम गुप्त की ब्रजभाषा रचना....
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