रविवार, 13 अप्रैल 2014

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन -सोरह --सवैया छंद --सुमन -३.. श्याम सवैया छंद (ब)..जन्म मिले यदि... .डा श्याम गुप्त ...

           ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन -सोरह --सवैया छंद -सुमन ३-श्याम सवैया छंद (ब)..जन्म मिले यदि.....

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                       ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
              

                     मेरे नवीनतम प्रकाशित  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नवगीत आदि  मेरे  ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव-अरपन .. सोरह,,,सुमन ३-श्याम सवैया छंद...(वर्ण गणना ...छ पंक्तियाँ )...
        (ब)..जन्म मिले यदि..... 

जन्म मिलै यदि मानुस कौ, तौ भारत भूमि वही अनुरागी |
पूत बड़े नेता कौं बनूँ, निज हित लगि देश की चिंता त्यागी |
पाहन ऊंचे मौल सजूँ, नित माया के दर्शन पाऊं सुभागी |
जो पसु हों तौ स्वान वही, मिले कोठी औ कार रहों बड़भागी |
काठ बनूँ तौ बनूँ कुर्सी, मिलि  जावै मुराद मिले मन माँगी |
श्याम' जहै ठुकराऊं मिले, या फांसी या जेल सदा को हो दागी ||

वाहन हों तौ हीरो होंडा, चलें बाल-युवा सबही सुखरासी |
बास रहे दिल्ली -बैंगलूर, न चाहूँ अजुध्या मथुरा न कासी |
चाकरी प्रथम किलास मिले, सत्ता के मद में चूर नसा सी  |
पत्नी मिलै संभारै दोऊ, घर-चाकरी बात न टारै ज़रा सी |
श्याम' मिलै बँगला-गाडी, औ दान-दहेज़ प्रचुर धन रासी |
जौ कवि हों तौ बसों लखनऊ, हर्षावै गीत-अगीत विधा सी ||




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