मंगलवार, 11 जून 2013

ब्रजबांसुरी की रचनाएँ ...भाव अरपन छः ....अतुकांत रचनायें ...सुमन-4 ..इतिहास और प्रगति....

ब्रजबांसुरी की रचनाएँ ...भाव अरपन छः ....अतुकांत रचनायें ...सुमन-४.इतिहास और प्रगति...

                                                

                                       



                      शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है भाव अरपन छः  ...तुकांत रचनायें ...सुमन-४. ..     इतिहास और प्रगति..

हम काहे इतिहास की ओर देखें ,
पुरानन कों सुनें और सुनावें,
 काहे न आगें ही आगें कदम बढावें |
 इतिहास पढिवे और सोचिबे ते तौ ,
पुरातन पंथी रही जावेंगे |
हमारे प्रगतिवादी सखा -यही कहत रहत हैं ;
जो प्रगतिवाद  की धार में ही
बहत  रहत हैं

हमनै पूछौ-
जे प्रगति का होवै है ?
'जो आजु तक की गति है,
वाते आगें का नयी प्राप्ति है ,
प्रति-गति है |'
जो इतिहास कों नाहिं जानि पावैंगे 
अबलौं कौ अच्छौ बुरौ अनुभव 
नाहिं जानि पावैंगे,
तौ आगें कैसें सही कदम बढावैंगे 
अच्छौ बुरौ कैसें  समझि पावैंगे,
का किंकर्तव्यविमूढ़ नाहिं रहि जावेंगे |
जड़न कौं छोड़ पत्ता सींचन ते तौ ,
पेड़ हरौ नाहिं होवै है | 
बड़ेंन के अनुभव छोडि, कोऊ समाज-
प्रगति के पथ पै खड़ा नाहिं होवै है |

यदि बाराखडी ही भूलि जावेंगे 
तौ नए नए ग्रन्थ कैसें रचि  पावैंगे |
जो एक दुई तीनि ही नाहिं याद रहै 
तौ नित नयी खोजकैसें करि पावैंगे |
वाही भूलि कौं बेरि -बेरि दुहरावैंगे|
प्रगति की राह पै
कैसें खड़े होय पावैंगे ||

 

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