बुधवार, 18 मई 2016

का का प्र गीत....अभी तो शेष है मुझमें--डा श्याम गुप्त ...



जीवन-दृष्टि ---काव्य संग्रह के गीत ------

कारण  कार्य व  प्रभाव  गीत....अभी तो शेष है मुझमें ......


अभी तो शेष है मुझमें ,
अथक संघर्ष की क्षमता |
       
          तिमिर होने लगी है किन्तु -
              धुंधली सी किरण भी है |
                 मुझे  लगता है यह संदेह,
                     बस यूंही अकारण है ||

अँधेरे भेद कब पाए ,
भला उजियार की क्षमता |

     साथ मेरे चले जो भी ,
         वही झिलमिल किरण होगा |
             राग दीपक की लहरी से,
                 तिमिर का तम हरण होगा ||

समझ तूफ़ान कब पाए,
तरणि-संघर्ष की क्षमता |

       बहुत चाहा, नहीं जलयान,
            तट की शरण जा पाये |
               धैर्य संकल्प के आगे ,
                   कहाँ तूफ़ान टिक पाए ||


   कहाँ साए की ठंडक में,
  धूप की तपन सी क्षमता |

       पला सायों में उसने कब ,
           जहां का दर्द जाना है |
             तप दिनभर वही समझा ,
                दर्दे-गम का तराना है ||

  अँधेरे भ्रम के कब समझे  ,
  मौन विश्वास की क्षमता |

        नहीं होती कोइ सीमा ,
            किसी भ्रम के निवारण की |
                 नहीं होती मगर श्रृद्धा,
                    कभी यूंही अकारण ही ||


   अहं का गीत क्या जाने ,
  समर्पण भाव की क्षमता |

         अहं में अनसुनी चाहे,
             करो तुम वन्दना मेरी |
                 समर्पण भाव में मैं तो,
                    तुम्हारे छंद गाता हूँ ||


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