सोमवार, 31 मार्च 2014

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन तेरह.....छप्पय छंद... ....डा श्याम गुप्त ...

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
              

                     मेरे नवीनतम प्रकाशित  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नवगीत आदि  मेरे  ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव-अरपन  तेरह...छपप्य छंद...

                सुमन १..जल .
आवेगी वो सदी  जब जल कारन हों युद्ध ,
सदियन पहलें हू भये, जल के कारन युद्ध |
उन्नत मानुस भयो प्रकृति सह भाव बनायौ ,
कुआ बावरी ताल बने जन मन हरासयौ |
निज सुख हित, नास प्रकृति कौ यदि मानुस करतो नहीं ,
जल कारन फिर युद्ध पतन की बात सुनि सकतो कहीं ||



काकी पत्नी कौन है, काके कितेक यार,
कौन करे कब दुश्मनी, कब कर बैठे प्यार |
दुखिया सबते दीन, कबहुँ निरबल अति भारी ,
कबहुँ वही बनि जाय, महा पावरफुल नारी |
सबहीं कौं धू रि चटाय, चाहें माफिया जितनौ बड़ो,
समुझि लेउ बस दूर दरसन सीरियल पल्ले पडौ ||

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