घनाक्षरी छंद , कैसे रंगे बनवारी --डा श्याम गुप्त
कैसे रंगे बनवारी
सोचि सोचि राधे हारी,कैसे रन्गै बनवारी,
कोऊ तौ न रन्ग चढै, नीले रन्ग वारे हैं।
बैजनी बैजन्ती माल, पीत पट कटि डारि,
ओठ लाल लाल, लाल,नैन रतनारे हैं ।
हरे बांस वन्शी हाथ, हाथन भरे गुलाल,
प्रेम रंग सनो श्याम, केस कज़रारे है ।
केसर अबीर रोरी,रच्यो है विशाल भाल,
रंग रंगीलो तापै, मोर-मुकुट धारे हैं ॥
सखि! कोऊ रंग डारौ, चढिहै न लालज़ू पै,
क्यों न चढै रंग, लाल, राधा रंग हारौ है ।
सखि कहौ नील तनु,चाहै श्याम घन सखि,
तन कौ है कारौ पर, मन कौ न कारौ है ।
राधाजू दुलारौ कहौ, जन जन प्यारौ कहौ,
रन्ग रंगीलो पर, मन उजियारो है ।
एरी सखि! जियरा के, प्रीति रन्ग ढारि देउ,
श्याम, रंग न्यारो चढे, सांवरो नियारौ है ॥
क्यों न चढै रंग, लाल, राधा रंग हारौ है ।
सखि कहौ नील तनु,चाहै श्याम घन सखि,
तन कौ है कारौ पर, मन कौ न कारौ है ।
राधाजू दुलारौ कहौ, जन जन प्यारौ कहौ,
रन्ग रंगीलो पर, मन उजियारो है ।
एरी सखि! जियरा के, प्रीति रन्ग ढारि देउ,
श्याम, रंग न्यारो चढे, सांवरो नियारौ है ॥
भारत माता
हिम से मंडित इसका किरीट,गर्वोन्नत गगनांगन भाया।
उगता रवि जब इस आँगन में, लगता सोना है बिखराया ।
मरुभूमि व सुन्दरवन से सज़ी, दो सुन्दर बाहों युत काया।
वो पुरुष पुरातन विन्ध्याचल, कटि- मेखला बना हरषाया ।
कण कण में शूर वीर बसते, नस नस में शौर्य भाव छाया।
हर तृण ने इसकी हवाओं के, शूरों का परचम लहराया ।
इस ओर उठाये आँख कोई,वह शीश न फिर उठ पाता है।
वह दृष्टि न फिरसे देख सके, जो इस पर जो दृष्टि गढ़ाता है ।
यह भारत प्रेम -पुजारी है, जग हित ही इसे सुहाता है ।
हम विश्व शान्ति हित के नायक,यह शान्ति दूत कहलाता है।
यह विश्व सदा से भारत को, गुरु जगत का कहता आता है।
इस युग में भी यह ज्ञान ध्वजा,नित नित फहराता जाता है।
इतिहास बसे अनुभव संबल, मेधा बल वेद ऋचाओं में।
अब रोक सकेगा कौन इसे, चल दिया पुनः नव राहों में।
नित नव तकनीक सजाये कर,विज्ञान का बल ले बाहों में।
नव ज्ञान तरंगित इसके गुण, फैले अब दशों दिशाओं में।
नित नूतन विविध भाव गूंजें,इस देश की कला कथाओं में।
ललचाते देव, मिले जीवन, भारत की सुखद हवाओं में।
हिम से मंडित इसका किरीट,गर्वोन्नत गगनांगन भाया।
उगता रवि जब इस आँगन में, लगता सोना है बिखराया ।
मरुभूमि व सुन्दरवन से सज़ी, दो सुन्दर बाहों युत काया।
वो पुरुष पुरातन विन्ध्याचल, कटि- मेखला बना हरषाया ।
कण कण में शूर वीर बसते, नस नस में शौर्य भाव छाया।
हर तृण ने इसकी हवाओं के, शूरों का परचम लहराया ।
इस ओर उठाये आँख कोई,वह शीश न फिर उठ पाता है।
वह दृष्टि न फिरसे देख सके, जो इस पर जो दृष्टि गढ़ाता है ।
यह भारत प्रेम -पुजारी है, जग हित ही इसे सुहाता है ।
हम विश्व शान्ति हित के नायक,यह शान्ति दूत कहलाता है।
यह विश्व सदा से भारत को, गुरु जगत का कहता आता है।
इस युग में भी यह ज्ञान ध्वजा,नित नित फहराता जाता है।
इतिहास बसे अनुभव संबल, मेधा बल वेद ऋचाओं में।
अब रोक सकेगा कौन इसे, चल दिया पुनः नव राहों में।
नित नव तकनीक सजाये कर,विज्ञान का बल ले बाहों में।
नव ज्ञान तरंगित इसके गुण, फैले अब दशों दिशाओं में।
नित नूतन विविध भाव गूंजें,इस देश की कला कथाओं में।
ललचाते देव, मिले जीवन, भारत की सुखद हवाओं में।
कवि का वेलेंटाइन-- उपहार
कवि का वेलेंटाइन-- उपहार
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
मैं तो कवि हूँ मुझ पर क्या है ,
कविता गीतों की झंकार |
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
गीत रचूँ तो तुम ये समझना,
पायल कंगना चूड़ी खन खन |
छंद कहूं तो यही समझना ,
कर्ण फूल बिछुओं की रुन झुन |
मुक्तक रूपी बिंदिया लाऊँ ,
या नगमों से होठ रचाऊँ |
ग़ज़ल कहूं तो उर में हे प्रिय !
पहनाया हीरों का हार ||---प्रिय तुमको....
दोहा, बरवै, छंद, सवैया ,
अलंकार रस छंद - विधान |
लाया तेरे अंग- अंग को,
विविधि रूप के प्रिय परिधान |
भाव ताल लय भाषा वाणी ,
अभिधा लक्षणा और व्यंजना |
तेरे प्रीति- गान कल्याणी,
तेरे रूप की प्रीति वन्दना |
नव- गीतों की बने अंगूठी ,
नव-अगीत की मेहंदी भाये |
जो घनाक्षरी सुनो तो समझो,
नक् -बेसर छलकाए प्यार |...--प्रिय तुमको....||
नज्मों की करधनी मंगालो,
साड़ी छप्पय कुंडलियों की |
चौपाई की मुक्ता-मणि से,
प्रिय तुम अपनी मांग सजालो |
शेर, समीक्षा, मस्तक- टीका,
बाजू बंद तुकांत छंद हों |
कज़रा अलता कथा कहानी,
पद, पदफूल व हाथफूल हों |
उपन्यास केशों की वेणी,
और अगीत फूलों का हार |
मंगल सूत्र सी वाणी- वन्दना ,
काव्य-शास्त्र दूं तुझपे वार |----प्रिय तुमको ....||
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
मैं तो कवि हूँ मुझ पर क्या है ,
कविता गीतों की झंकार |
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
गीत रचूँ तो तुम ये समझना,
पायल कंगना चूड़ी खन खन |
छंद कहूं तो यही समझना ,
कर्ण फूल बिछुओं की रुन झुन |
मुक्तक रूपी बिंदिया लाऊँ ,
या नगमों से होठ रचाऊँ |
ग़ज़ल कहूं तो उर में हे प्रिय !
पहनाया हीरों का हार ||---प्रिय तुमको....
दोहा, बरवै, छंद, सवैया ,
अलंकार रस छंद - विधान |
लाया तेरे अंग- अंग को,
विविधि रूप के प्रिय परिधान |
भाव ताल लय भाषा वाणी ,
अभिधा लक्षणा और व्यंजना |
तेरे प्रीति- गान कल्याणी,
तेरे रूप की प्रीति वन्दना |
नव- गीतों की बने अंगूठी ,
नव-अगीत की मेहंदी भाये |
जो घनाक्षरी सुनो तो समझो,
नक् -बेसर छलकाए प्यार |...--प्रिय तुमको....||
नज्मों की करधनी मंगालो,
साड़ी छप्पय कुंडलियों की |
चौपाई की मुक्ता-मणि से,
प्रिय तुम अपनी मांग सजालो |
शेर, समीक्षा, मस्तक- टीका,
बाजू बंद तुकांत छंद हों |
कज़रा अलता कथा कहानी,
पद, पदफूल व हाथफूल हों |
उपन्यास केशों की वेणी,
और अगीत फूलों का हार |
मंगल सूत्र सी वाणी- वन्दना ,
काव्य-शास्त्र दूं तुझपे वार |----प्रिय तुमको ....||
मंगलवार, १९ जनवरी २०१०
सरस्वती वन्दना --डा श्याम गुप्त
हे मानस की देवी शारदे !
मानस में अवतार धरो माँ |
मन मंदिर में कविता बन कर,
जीवन का उद्धार करो माँ||
जले प्रेम की ज्योति ह्रदय में ,
हे माँ! तेरी कृपा दृष्टि हो |
इसी भक्ति भरो माँ उर में ,
प्रेम मयी यह सकल सृष्टि हो ||
तेरी चरण धूलि की मसि से,
ह्रदय पत्र पर जो अंकित हो |
मन की कलम लिखे जो उसमें ,
छंद ताल लय सुर संगम हो ||
अपनी स्वच्छ धवल शोभा की,
एक किरण का मुझको वर दो |
सारे कलुष दोष मिट जाएँ ,
शुभ्र ज्योत्सना मन में भर दो ||
तेरे दर पर खडा श्याम है,
कागज़ कलम दवात लिए माँ,
प्रेम ज्योति जग में बिखराने,
आशिष देदो, आज्ञा दो माँ ||
मानस में अवतार धरो माँ |
मन मंदिर में कविता बन कर,
जीवन का उद्धार करो माँ||
जले प्रेम की ज्योति ह्रदय में ,
हे माँ! तेरी कृपा दृष्टि हो |
इसी भक्ति भरो माँ उर में ,
प्रेम मयी यह सकल सृष्टि हो ||
तेरी चरण धूलि की मसि से,
ह्रदय पत्र पर जो अंकित हो |
मन की कलम लिखे जो उसमें ,
छंद ताल लय सुर संगम हो ||
अपनी स्वच्छ धवल शोभा की,
एक किरण का मुझको वर दो |
सारे कलुष दोष मिट जाएँ ,
शुभ्र ज्योत्सना मन में भर दो ||
तेरे दर पर खडा श्याम है,
कागज़ कलम दवात लिए माँ,
प्रेम ज्योति जग में बिखराने,
आशिष देदो, आज्ञा दो माँ ||
अगीत वाद व अगीत कविता के प्रवर्तक डा रन्गनाथ मिश्र ’सत्य’ सम्मानित ----
हिन्दी सन्स्थान के यशपाल सभागार में हुए एक भव्य समारोह में राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान , उत्तर प्रदेश द्वारा अगीतकविता के प्रवर्तक व ' अखिल भारतीय अगीत अगीत संस्था, लखनऊ ' के संस्थापक अध्यक्ष , डा रंग नाथ मिश्र सत्य को ' साहित्य गौरव' सम्मान से सम्मानित किया गया | यह सिर्फ उनकी सेवाओं की ही नहीं अपितु अगीत कविता व अगीत आन्दोलन के हिन्दी जगत में सम्पूर्ण स्वीकृति की परचायक है . | इसके साथ ही डा सत्य को निराला नगर स्थित ' अखिल भारत विचार क्रान्ति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रविकांत करे बाबाजी द्वारा भी शाल , व नकद पुरस्कार द्वारर सम्मानित किया गया|
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