मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

वर्चस्व की सन्स्क्रति व महिलाएं---डा श्याम गुप्त..

’वफदारेी का लाइसेन्स है करवा चौथ '......

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति के सेमीनार -'वर्चस्व की संस्कृति और महिलायें ' में मैत्रेयी पुष्पा , मधु गर्ग आदि स्वघोषित तथाकथित महान महिलाओं द्वारा कुछ अविचारशील बातें कही गयी |
.’वफदारेी का लाइसेन्स है करवा चौथ '. हर साल नवीनीकरण कराना पड़ता है |---
-----क्या मैत्रेयी समझती हैं कि करवा चौथ व्रत वफादारी के लिए रखा जाता है ? वह तो सिर्फ पति की लम्बी आयु के लिए होता है, ताकि पत्नी सदा सुहागिन रहे और पति की पहले मृत्यु होजाने पर वे तमाम सुखों से बंचित न हों । जिन्हें उस व्रत के उद्देश्य का ही ज्ञान नहीं उसके बारे में उनके कथन का क्या महत्त्व ? फिर क्या मैत्रेयी बताएंगी कि करवा चौथ व्रत रखने से वफादारी कैसे सिद्ध होगी, क्या करवा चौथ व्रत रखकर भी स्त्री / पत्नी वेवफा रहे तो किसी को क्या पता चलेगा , कोई क्या कर लेगा, होता भी है एसा ।

. लड़कियां घरों से बाहर निकलकर भी पुरुषों के बीच बंधी हुई हैं , चिड़िया की तरह आज़ाद नहीं । ----
--------क्या ये महान महिलायें चाहती हैं कि महिलायें सिर्फ महिलाओं से बंधकर , उनके साथ ही कार्य करें , कार्य स्थलों से पुरुषों को हटा दिया जाय , सिर्फ महिलाएं ही रहें ; या घरों से भी पुरुषों को हटा दिया जाय , महिला-राज्य, महिला देश स्थापित किया जाय ?----क्या ये देख कर आयी हैं कि चिड़ियाँ -चिरौटों के बिना रहतीं हैं , आकाश में अकेली उड़ती हैं | कैसे कैसे मूर्खतापूर्ण विचार -कथन एसे लोगों के दिमाग में आते हैं । भाई --अगर गाडी चलानी है तो एक पहिये से कैसे चलेगी , सोचें -विचारें , तब कहें । " अति सर्वत्र वर्ज्ययेत । "
----इतिहास में स्त्री देश का भी ज़िक्र है जहां के अत्याचार एक राजकुमार ने ही जाकर बंद कराये थे | गुरु मत्स्येन्द्र नाथ को भी स्त्री देश से गुरु गोरखनाथ ने आज़ाद कराया था ।
----यदि स्त्री को अपना अलग संसार ही रखना है जहां सब कुछ स्त्रियों का ही हो तो फिर वही भारतीय परम्परा क्या बुरी है जहां महिलायें --महिलाओं में ही उठती बैठती हैं , महिलाओं से ही दोस्ती , नाच-गान , अपना अलग संसार होता है जहां पुरुषों , पुरुष-मित्रों-दोस्तों आदि का कोई दखल-मतलब नहीं होता ।
३- वर्चस्व की संस्कृति-----आखिर वर्चस्व की बात ही क्यों हो , किसी का भी वर्चस्व क्यों हो , युक्ति-युक्त पूर्ण तथ्यों की बात क्यों न हो , नकिसी का वर्चस्व न, किसी का अधिकार हनन अन्यथा फिर पुरुषों द्वारा वर्चस्व हनन की बात उठेगी |
------- एसे व्यर्थ के अतिवादी , अविचारशील, अवैज्ञानिक कथनों व कृत्यों से ही कोई भी अच्छा भाव/ विचार / कार्य आकार लेने से पहले ही विनष्ट होजाता है | इनसे महिलाओं व समाज की हानि हो रही है ।
-----बस्तुतः यह कोई स्त्री-पुरुष का झगड़ा नहीं है अपितु अच्छे -बुरे मानव , मानवीयता , आचरण -शुचिता , चरित्र के अवनति की बात है जिसकी हर जगह बात होनी चाहिए ।

कोई टिप्पणी नहीं: