रविवार, 17 जुलाई 2016

अनुबंधित सम्बन्ध ----काव्य संग्रह 'जीवन दृष्टि से....डा श्याम गुप्त

अनुबंधित सम्बन्ध ----काव्य संग्रह 'जीवन दृष्टि से....

अनुबंधों के जग में अब,
क्या संबंधों की बात करें |
स्वार्थ न तुझसे कोई है तो-
अपने ही प्रतिघात करें |


अनुबंधों के जग में अब,
क्या संबंधों की बात करें ||

आज नहीं परमार्थ भाव से ,
साथ किसी का कोई देता |
दो हाथों से लेलेता है,
एक हाथ से यदि कुछ देता |

रिश्ते नाते स्वार्थ भरे हैं ,
सब क्यों तुझको पूछ रहे |
तेरी दौलत ,धन, ऊंचाई ,
माप तौल कर बूझ रहे |

तेरे हैं अनुबंध बहुत संग,
फिर क्यों ना संवाद करें ||

हमने तो देखा है यह जग,
बहुत दूर से, बहुत पास से |
हमने पूछ के, सुनके देखा,
सभी आम से, सभी ख़ास से |

जिसको तुझसे लाभ मिल रहा,
तुझको अपना मानेंगे |
तू निष्प्रह, निष्पक्ष भाव तो,
क्यों तुझको सम्मानेंगे ।

उनके स्वार्थ में साथ न दे तू,
फिर क्यों तुझे सलाम करें ||

पिता पुत्र माँ पत्नी पुत्री,
सखा सखी साथी कर्मी |
सारे प्रिय सम्बन्ध, प्रीतिरस,
अपने ही हित के धर्मी |

तू हित साधन जब तक होगा,
प्रीति रीति तब तक होगी |
अनुचित कर्मों के तेरे फल-
का न कोई होगा भोगी |

क्यों न भला फिर, मन के-
सच्चे संबंधों की बात करें |

मानव, ईश्वर, भक्ति, न्याय-
सत अनुबंधों की बात करें |
अनुबंधों के जग में अब -
क्या संबंधों की बात करें ||

कोई टिप्पणी नहीं: