माँ शारदे !
( हरिगीतिका छंद -- २८ मात्रा , चार चरण, चरणान्त में लघु -गुरु , तुकांत )
माँ शारदे आराधना ही ज्ञान का आधार है |
माँ वाग्देवी,वीणा-वादिनि ज्ञान का भण्डार है |
माता सरस्वति,मातु वाणी ज्ञान का आगार है |
मातु अर्चन-साधना ही साहित्य का संसार है ||
हम हैं शरण में आपकी माँ ज्ञान के स्वर दीजिए |
सुख-शान्ति का वातावरण जग में रहे वर दीजिए |
कवि हों सुहृद समर्थ सात्विक सौख्य स्वर परिपूर्ण हों |
साहित्य हो सुंदर शिवं सत-तथ्य शुचि सम्पूर्ण हों ||
( हरिगीतिका छंद -- २८ मात्रा , चार चरण, चरणान्त में लघु -गुरु , तुकांत )
माँ शारदे आराधना ही ज्ञान का आधार है |
माँ वाग्देवी,वीणा-वादिनि ज्ञान का भण्डार है |
माता सरस्वति,मातु वाणी ज्ञान का आगार है |
मातु अर्चन-साधना ही साहित्य का संसार है ||
हम हैं शरण में आपकी माँ ज्ञान के स्वर दीजिए |
सुख-शान्ति का वातावरण जग में रहे वर दीजिए |
कवि हों सुहृद समर्थ सात्विक सौख्य स्वर परिपूर्ण हों |
साहित्य हो सुंदर शिवं सत-तथ्य शुचि सम्पूर्ण हों ||
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