गुरुवार, 4 जुलाई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....भाव अरपन ..नौ ..अगीत .. ....डा श्याम गुप्त....



            ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
              
                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नवगीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव अरपन ..नौ....अगीत ....

सुमन १....सुख ..
इक दूजे सौं
दूरि है जावे ते 
हिया की दूरी घटि जावे है |
वियोग में देर लौं
राह देखिबे के बाद 
मिलन कौ सुख 
और हूँ अनूठौ है जावै है |

सुमन ३-तिहारे बोल....
तिहारे बोल 
बेरि बेरि काननि में आवैं हैं ;
रुबावत हैं
मनावत हैं
समुझावत हैं 
अबिनासी अनहद नाद की लौं 
बेरि बेरि
तिहारी सुधि दिलावें हैं  |

सुमन ५ - उपलब्धि ...
मन के कोरे कागद पै
तिहारी छवि
जोत किरन लौं लहराई 
एक नई कविता
खिलि  आई ,
पुष्पित है आई |

सुमन ८ -अमर ....
मरिबे  के बाद, जीव-
जदपि छूटि जावै है -
बंधन ते, जगत ते, पर -
कैद है जावै है,
मन में,
आत्मजननि के, अपुनि जनन के,
सुधि रूपी बंधन में, और-
है जावै है ...अमर |







7 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

वाह कितने प्यारे प्यारे गीत । अंतिम वाला तो बहुत
बहुत सुंदर और आध्यात्मिक भी ।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

dhanyvad aashaj....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

बहुत बढिया...सुन्दर ..

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद अशोक जी....

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद प्रसन्न जी....

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद चाहर जी....